तीस सालपहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक कार्यक्रम की नींव रखी थी, जिसे बाद में पीली क्रांति कहा गया। 1986 में उन्होंने जो ऑयल सीड्स टेक्नोलॉजी मिशन शुरू किया था उसने भारत को खाद्य तेल के मामले में बड़े आयातक से 1993-94 तक यानी दस से भी कम वर्षों में लगभग आत्म-निर्भर बना दिया था। बेशक, यह उल्लेखनीय उपलब्धि थी। उसके बाद पतन शुरू हुआ। भारत बड़ी खुशी से विश्व व्यापार संगठन के आगे झुक गया और अपनी पीली क्रांति को खत्म कर दिया। यह इस तथ्य का क्लासिक उदाहरण है कि उम्मीदें जगाने वाला घरेलू खाद्य तेल का क्षेत्र आर्थिक उदारीकरण की बलिवेदी पर किस तरह चढ़ाया गया। आयात शुल्कों में व्यापक कटौती से सस्ते आयात की बाढ़ गई, जिससे किसान तिलहनों की खेती छोड़ने पर मजबूर हो गए। 300 प्रतिशत के बाध्यकारी स्तर से आयात शुल्क चरणबद्ध तरीके से घटाकर लगभग शून्य कर दिया गया। किसानों के बाहर होते ही प्रोसेसिंग उद्योग को भी अपना काम बंद करना पड़ा। आज भारत अपनी आवश्यकता का 67 फीसदी से भी अधिक खाद्य तेल का आयात करता है, जिस पर 66,000 करोड़ रुपए की जबर्दस्त लागत आती है।