नई दिल्ली: सरकार अगर अपने रुख पर कायम रही तो हमारे खेतों में जल्दी ही सरसों की ऐसी फसल उगाई जाएगी जिसमें जीएम यानी जैनेटिकली मॉडिफाइड बीजों का इस्तेमाल होगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसल की पैदावार अधिक होगी और यह कृषि क्षेत्र में क्रांति आने जैसा होगा. लेकिन जीएम सरसों को लेकर विवाद बना हुआ है और दिल्ली में आज फिर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कुछ सवाल उठाए. मिसाल के तौर पर यह कि अभी तक साफ नहीं हुआ है कि इस तरह से उगाई गई फसल का हमारी सेहत पर कोई गलत असर नहीं पड़ेगा और पर्यावरण और जैव विविधता पर कोई कुप्रभाव नहीं होगा.
जीएम सरसों की इस किस्म को दिल्ली विश्वविद्यालय के जैव विज्ञानियों की टीम ने तैयार किया है. इसे धारा मस्टर्ड हाइब्रीड -11 या डीएमएच -11 कहा जाता है. टीम के मुखिया डॉ दीपक पेंटल का कहना है कि जीएम सरसों पूरी तरह से सुरक्षित है और पर्यावरण के लिए कतई नुकसानदेह नहीं है. एनडीटीवी के कार्यक्रम वॉक द टॉक में डॉ पेंटल ने कहा कि हमने इस किस्म को तैयार करने में तीस साल लगाए हैं और इसमें कोई खतरा नहीं है. डॉ पेंटल ने कहा, "अगर आप डीएनए में प्रोटीन इंजेक्ट करते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह नुकसानदेह नहीं है तो किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. यकीन मानिए आज टेक्नोलॉजी काफी विकसित हो चुकी है और यह जानना बिल्कुल मुमकिन है कि जो प्रोटीन आप डाल रहे हैं वह नुकसान नहीं करेगा."